छठ महापर्व का आज तीसरा दिन:इंदौर में व्रतधारी महिलाएं जलकुण्ड में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देंगी; समापन कल
छठ महापर्व का आज तीसरा दिन:इंदौर में व्रतधारी महिलाएं जलकुण्ड में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देंगी; समापन कल
पूरे देश के साथ इंदौर शहर में भी चार दिवसीय छठ महापर्व को लेकर लोगों में उत्साह है। बुधवार को व्रतधारी महिलाएं शाम 6.08 बजे जलकुण्ड में खड़े होकर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देंगी। श्रद्धालुओं के मुताबिक खरना के बाद वाले दिन सुबह से ही महिलाएं ठेकुआ, गुजिया, पुड़ी, पुआ सहित अन्य पकवान तैयार करती हैं। ये सारे पकवान मिट्टी के चूल्हे पर पकाए जाते हैं। इसके बाद सूप में फल, ठेकुआ और सारे पकवानों को सजा कर टोकरी में बांध कर घाट ले जाया जाता है। शाम को व्रती सूर्यास्त के समय कमर भर पानी में खड़ी होकर सूर्य देव को फल और पकवान से भरा सूप लेकर संध्या अर्घ्य देती हैं। संध्या अर्घ्य के बाद व्रती वापस घर लौट आती हैं। दूसरे दिन सुबह वापस फलों और पकवानों से सूप सजाकर लकड़ी की टोकरी में रख ली जाती है। सूर्योदय से पहले घाट जाकर उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर व्रती छठ मैया से सुख समृद्धि की कामना करेंगी। सुबह के अर्घ्य के बाद व्रती घर आकर पारण करती हैं। इसके बाद घाट पर उपस्थित सभी श्रद्धालुओं को ठेकुए का प्रसाद बांटा जाएगा। इंदौर के 150 से अधिक छठ घाटों पर भास्कर देव को देंगे अर्घ्य विजयनगर, बाणगंगा, तुलसी नगर, समर पार्क, सुखलिया, वक्रतुण्ड नगर, संगम नगर, शंखेश्वर सिटी, निपानिया, सिलिकॉन सिटी, एरोड्रम रोड, कालानी नगर, पिपलियाहाना तालाब, और कैट रोड सूर्य मंदिर सहित शहर के 150 से अधिक छठ घाटों पर सूर्य देव को अर्घ्य देने की व्यवस्था की गई है। इस महापर्व में प्रकृति की पूजा की जाती है। हर चीज सात्विक और प्राकृतिक होता है। सूर्य भगवान जो कि साक्षात हैं, उनकी पूजा की जाती है। व्रत में बनने वाला प्रसाद भी सीजनल फल और गेहूं के आटे से बना होता है। बांस के बने सूप में छठ मैया को प्रसाद भोग लगाया जाता है। इस पर्व में गन्ना, सुथनी, कंद, मौसमी, सेव, केला, अनार, नारियल जैसे सीजनल फलों को चढ़ाया जाता है। यह पर्व प्रकृति की उपासना का पर्व है। महापर्व का समापन 8 नवंबर (शुक्रवार) को प्रातः 6.32 बजे पर उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर किया जाएगा।
पूरे देश के साथ इंदौर शहर में भी चार दिवसीय छठ महापर्व को लेकर लोगों में उत्साह है। बुधवार को व्रतधारी महिलाएं शाम 6.08 बजे जलकुण्ड में खड़े होकर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देंगी। श्रद्धालुओं के मुताबिक खरना के बाद वाले दिन सुबह से ही महिलाएं ठेकुआ, गुजिया, पुड़ी, पुआ सहित अन्य पकवान तैयार करती हैं। ये सारे पकवान मिट्टी के चूल्हे पर पकाए जाते हैं। इसके बाद सूप में फल, ठेकुआ और सारे पकवानों को सजा कर टोकरी में बांध कर घाट ले जाया जाता है। शाम को व्रती सूर्यास्त के समय कमर भर पानी में खड़ी होकर सूर्य देव को फल और पकवान से भरा सूप लेकर संध्या अर्घ्य देती हैं। संध्या अर्घ्य के बाद व्रती वापस घर लौट आती हैं। दूसरे दिन सुबह वापस फलों और पकवानों से सूप सजाकर लकड़ी की टोकरी में रख ली जाती है। सूर्योदय से पहले घाट जाकर उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर व्रती छठ मैया से सुख समृद्धि की कामना करेंगी। सुबह के अर्घ्य के बाद व्रती घर आकर पारण करती हैं। इसके बाद घाट पर उपस्थित सभी श्रद्धालुओं को ठेकुए का प्रसाद बांटा जाएगा। इंदौर के 150 से अधिक छठ घाटों पर भास्कर देव को देंगे अर्घ्य विजयनगर, बाणगंगा, तुलसी नगर, समर पार्क, सुखलिया, वक्रतुण्ड नगर, संगम नगर, शंखेश्वर सिटी, निपानिया, सिलिकॉन सिटी, एरोड्रम रोड, कालानी नगर, पिपलियाहाना तालाब, और कैट रोड सूर्य मंदिर सहित शहर के 150 से अधिक छठ घाटों पर सूर्य देव को अर्घ्य देने की व्यवस्था की गई है। इस महापर्व में प्रकृति की पूजा की जाती है। हर चीज सात्विक और प्राकृतिक होता है। सूर्य भगवान जो कि साक्षात हैं, उनकी पूजा की जाती है। व्रत में बनने वाला प्रसाद भी सीजनल फल और गेहूं के आटे से बना होता है। बांस के बने सूप में छठ मैया को प्रसाद भोग लगाया जाता है। इस पर्व में गन्ना, सुथनी, कंद, मौसमी, सेव, केला, अनार, नारियल जैसे सीजनल फलों को चढ़ाया जाता है। यह पर्व प्रकृति की उपासना का पर्व है। महापर्व का समापन 8 नवंबर (शुक्रवार) को प्रातः 6.32 बजे पर उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर किया जाएगा।